भारत के पश्चिम में सौराष्ट्र के अरब सागर के तट पर ऐतिहासिक और दर्शनीय सोमनाथ मन्दिर स्थित है।
सोमनाथ महादेव मन्दिर देश के प्राचीनतम तीर्थ स्थानों मे से एक है, स्कन्द पुराण, श्रीमद् भागवत गीता, शिव पुराण आदि प्राचीन ग्रन्थों मे सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है.सोमनाथ मन्दिर आदिशिवलिंग शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। सुबह और संध्या के समय मन्दिर की मनमोहक छठा देखते ही बनती है। माना जाता है इस मन्दिर को स्वयं चन्द्रदेव ने बनवाया था। शिव पुराण के अनुसार भगवान ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ हुआ था। जिन्हें 27 नक्षत्रों के रुप मे भी जाना जाता है। उन सब पत्नियों में चन्द्रमा को रोहिणी जितनी प्रिये थी, उतनी दूसरी कोई पत्नी प्रिये नही थी। इससे दुखी होकर दूसरी स्त्रियाँ अपने पिता की शरण में गई। वह सब सुनकर दक्ष भी दुखी हो गये. चन्द्रमा के पास जाकर उन्हें समझाया, परन्तु चन्द्रमा फ़िर भी नही मानें. इससे क्रोधित होकर दक्ष ने चन्द्रमा को क्षय रोग हो जाने का श्राप दे दिया। क्षण भर में चन्द्रमा क्षय रोग से ग्रस्त हो गये। उनके क्षीण होते ही सब और हाहाकार मच गया। तब चन्द्रमा ऋषि वशिष्ठ इन्द्र आदि देवताओं के साथ ब्रह्माजी की शरण मे गये। तब ब्रह्मा ने इसके निवारण के लिये उपाय बताया कि वह सभी प्रभास नामक स्थान में जाकर विधि पूर्वक भगवान शिव की आरधना करें।
चन्द्रमा आदि देवताओं की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया की, एक पक्ष में प्रतिदिन उनकी कला क्षीण हो और दूसरे पक्ष में फ़िर वह निरंतर बढ़ती रहें। निराकार होते हुए भी भगवान शिव सोमेश्वर(चन्द्रमा) के आग्रह पर उन्ही के नाम पर वहाँ पर सोमेश्वर कहलाये।
माना जाता है सोमनाथ का पूजन करने से क्षय तथा कोढ़ आदि रोगों का नाश हो जाता है। सम्पूर्ण देवताओं द्वारा स्थापित सोमकुण्ड में तीनों लोकों के स्वामी साक्षात् भगवान शंकर प्रभास क्षेत्र में विद्यमान हैं।
सोमनाथ एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है जिसकी गिनती १२ ज्योतिर्लिंगों में होती है । सोमनाथ का बारह ज्योतिर्लिगों में सबसे प्रमुख स्थान है। सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढे सात से साढे आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बडा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है।
लोक कथाओं के अनुसार यहीं श्री कृष्ण ने देह त्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ गया। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिन्ह को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था। तब ही कृष्ण ने देह त्याग कर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बडा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है। मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोम नाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भू-भाग नहीं है। मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन पार्वती जी का मंदिर है। यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्र, कार्तिकमाह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।
मंदिर के प्रांगण में हनुमानजी का मंदिर, विनायक, नवदुर्गा खोडीयार, महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्लिग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मंदिर हैं। अघोरेश्वर मंदिर के समीप भैरवेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर, दुखहरण जी की जल समाधि स्थित है। पंचमुखीमहादेव मंदिर कुमार वाडा में, विलेश्वर मंदिर के नजदीक और राममंदिर स्थित है। नागरों के इष्टदेव हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मंदिर,कालिका मंदिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मंदिर, नागनाथ मंदिर समेत कुल 42 मंदिर नगर के लगभग दस किलो मीटर क्षेत्र में स्थापित हैं।
बाहरी क्षेत्र के प्रमुख मंदिर वेरावल प्रभास क्षेत्र के मध्य में समुद्र के किनारे शशिभूषण मंदिर, भीडभंजन गणपति, बाणेश्वर, चंद्रेश्वर-रत्नेश्वर, कपिलेश्वर, रोटलेश्वर, भालुका तीर्थ है। भालकेश्वर,प्रागटेश्वर, पद्म कुंड, पांडव कूप, द्वारिकानाथ मंदिर, बालाजी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, रूदे्रश्वर मंदिर, सूर्य मंदिर, हिंगलाज गुफा, गीता मंदिर के अलावा भी कई अन्य प्रमुख मंदिर है।
प्रमुख तीर्थ द्वारिका सोमनाथ से करीब दो सौ किलोमीटर दूरी पर प्रमुख तीर्थ श्रीकृष्ण की द्वारिका है। यहां भी प्रतिदिन द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारोंकी संख्या में श्रद्धालु आते है। यहां गोमती नदी है। इसके स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। इस नदी का जल सूर्योदय पर बढता जाता है और सूर्यास्त पर घटता जाता है, जो सुबह सूरज निकलने से पहले मात्र एक डेढ फीट ही रह जाता है।
सोमनाथ मंदिर जाने के लिये वायु मार्ग- सोमनाथ से 55 किलोमीटर स्थित केशोड नामक स्थान से सीधे मुंबई के लिए वायुसेवा है।
रेल मार्ग-सबसे समीप मात्र सात किलोमीटर दूरी पर स्थित वेरावल रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग- सोमनाथ वेरावल से 7 किलोमीटर, अहमदाबाद 400 किलोमीटर, और जूनागढ़ से 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। पूरे राज्य में इस स्थान के लिए बस सेवा उपलब्ध हैं।
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